सुनो प्रेम !!
विरह की पीड़ा
मनुष्य को
पाषाण बना देती है,
और प्रेम हमेंशा
चेतना मांगता है,
और मेरा प्रेम अब
उस पड़ाव पर है जहाँ
हृदय पाषाण है और मन चेतन,
बरहाल इस बेख्याली में
पाषाण पर कुछ वक्त के लिए
सुबह की धुंद ठहरती है
और हाँ… अश्रु भी!!