सदमें उठाके जीनेका लम्हा बना रहा
खुशीयों का दौर सामने आके खडा रहा
ऊनकी निगाह सबपे बडी महेरबां रही
लेकिन हमारे नामसे शीकवा गीला रहा
नजरों के सामने था किनारा न पा सके ?
इतनी कमी रही के नसीबा अडा रहा
किस्मत का खेल देखो आया न हाथ में
दामन उमिदों का तो हमारा धरा रहा
बढती चली गई महोबत की आरजु
उनके हमारे दरम्यां इक फासला रहा
नजरे जहांसे खुदको बचाते चले गये
फिरभी हमारे वस्ल का सबको पता रहा
मासूम चलेथे आपतो हस्ती संवारने
फिर क्या हुवा ये जिंदगी मे गम लगा रहा
मासूम मोडासवी