सुनो प्रेम!!
पतिले में उपर की सतह में जमी हुई
तुम्हारी उपर की कठोर सतह हटाते ही
एकदम सफ़ेद, निश्च्छल, मधुर और शांत
दूध की उपर की मलाई हो तुम,
और मैं
वो सांवली सी चाय की पत्ती,
जिसकी रूह तलक
पहुंचने के लिए भी उबाल जरूरी है,
और हाँ,
असीम प्रेमवश ही सही
जब तुम मुझ में धीरे धीरे मिलते हो
तो मैंने देखा है इश्क़ की आग में जलकर
तुम्हारा मेरे रंग में रंग जाना,
अपनी मोहब्बत को उफ़ान पे लाकर
सोंधी तपिश में हम दोनों का एक हो जाना
सब चाय कहते होंगे पर
मैं कहती हूं मोहब्ब्त
क्यों की मुझे बेहद पसंद है
इस तरह
तुम्हारा मुझ में समा जाना….