तुम बहुत खूबसूरत हो
स्त्री मान गयी…..
तुम बहुत मासूम हो
स्त्री बहल गयी….
तुम्हारे माथे लाल , गोल बिंदी
खूब सजती है
स्त्री ने लगा लिया…..
तुम पर साड़ी खूब खिलती है
स्त्री ने पहन लिया….
तुम पर आलता , पायल , बिछवा
खूब सजता है
स्त्री नाच उठी……
घर की लाज तुम्हारे हाथों में
स्त्री जुट गयी…..
तुम घर की धुरी हो
स्त्री गड़ गयी……
तुम मेरी सबबकुछ हो
स्त्री समर्पित हो गयी….
उसे पता ही नहीं चला
वो कब खुशी के लिये बिखर गई …..
काश वो रास्ते में मिल जाए
जाहिलों को सलाम करना है और फिर झूट-मूट डरना है काश वो रास्ते में मिल जाए मुझ को मुँह फेर...