हमें राह कैसी दीखाइ गइ है,
दिल से हमारी खुदाइ गइ है।
सबको दिये उसने पैमाने लिकिन,
हमें ओक से ही पीलाइ गइ है।
हमे एक जां सबसे कहेते रहे,
कहां दिल से अपने जुदाइ गइ है।
जबां से तो करते हैं हक बात वो,
अमल से मगर कब बुराइ गइ है।
हमसे खता क्या हुइ बिन बताऐ,
पाबंदी हमपे ये लगाइ गइ है ।
फितरत मे उसकी रही फीतना खोरी,
ये फीतना गरी हमें सीखाइ गइ है ।
कुसुर किससे हुवा महेफिल मे तेरी,
सजा किसको मासूम सुनाइ गइ है।
~ मासूम मोडासवी