दोस्त क्या, दुश्मन क्या, लड जाऊ मै सारा जहां,
हार जीत की परवा नही, अगर तुम साथ हो ||
कस्मे क्या, वादे क्या, निभाऊं तेरी हर चाह,
दुनिया की रीत की परवा नहि, अगर तुम साथ हो ||
अर्ज क्या, मर्ज क्या, तुझमे बसी मेरी दुनिया,
दर्द की परवा नहि, अगर तुम साथ हो ||
रब क्या, मजहब क्या, तुझसे ही मुकम्मल मेरी दुआ,
ईबादत की परवा नहि, अगर तुम साथ हो ||
आरंभ क्या, अंत क्या, हर ख्वाब मेरा हो तुझसे पूरा,
मौत की परवा नहि, अगर तुम साथ हो ||
– आदित शाह “अंजाम”