तेरा चुप रहना
तेरा चुप रहना मेरे ज़हन में क्या बैठ गया ,
इतनी आवाज़ें तुझे दीं के गला बैठ गया !
यूँ नहीं है के फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूं ,
जो भी उस पेड़ की छांव में गया , बैठ गया !
इतना मीठा था वो गुस्से भरा लहज़ा मत पूछ ,
उसने जिस-जिस को भी जाने का कहा , बैठ गया !
तहज़ीब हाफ़ी