तुम जन जन के बापू थे !
तुम ने अपनी कर्म-ज्योति से, जन्मभूमि उद्वीपत की,
ममता के प्रिय भाव जगाकर, सारे जग को सन्मति दी !
जब तुम थे तब मानवता थी, आज उसे वह ठौर कहाँ ?
नर-नारी सब व्याकुल हैं अति, रात्रि उन्हें, अब भोर कहाँ ?
जब तुम थे तब धर्म यहां था, राम नामका नारा था,
नम्र भाव इसलिए तुम्हारा, जन मन को प्यारा था !
केवल ना तुम हिंदु थे, जाति -जाति के रक्षक थे,
बापू तुम सिद्धांत प्रचारक ,सत्य प्रिय अहिंसक थे !
पूज्य आपकी राह पे चलने की आज प्रतिज्ञा करते हैं,
थे वो जो सिद्धांत तुम्हारे, सादर हिय में भरते हैं !
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-कृष्णकांत भाटिया ‘कान्त ‘